अच्छा लिखना और लगातार लिखना मेरे जैसे प्रथम बार के लेखक के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। जैसे मै जब केदार यात्रा से आया तो पूर्ण रूप से पवित्र था। पर जैसे जैसे भौतिक दुनिया में रमता रहा मेरी पवित्रता समाप्त होती रही। अब मुझ जैसे नए नवेले ब्लॉग लेखक जिसे कभी कभार यही नहीं पता होता की वो ब्लॉग लिख क्यों रहा है तो बहुत मुश्किल हो जाती है। कभी लगता है जल्दी से ब्लॉग लिख डालूँ कम से कम शब्दों में।
सहारनपुर में अंतिम दिन प्रथम दिन से बहुत अलग बीता। जँहा पहले दिन अपने पुराने घर और मोहल्ले में घूमे। घर मोहल्ला समय के साथ काफी बदल गया था। कई लोगो की याददाश्त भी समय के साथ घट चुकी थी।
मेरे घर में लगाए सभी पेड़ समय के साथ कट गए थे। बहुत सारा दुःख हुआ किन्तु आज जब मै लिख रहा हूँ तो समझ आता है समय के साथ परिवर्तन होता है कभी अच्छा कभी बुरा।
अंतिम दिन में बस एक ही प्रोग्राम था दोस्तों से मिलना। स्कूल में री-यूनियन रखा था फेसबुक पर ग्रुप पर डाला पर आये चार मुस्टंडे दोस्त ही। नहीं उनमें से दो सीधे भी हैं। पर एक सीख मिली कभी सीधे दोस्त मत बनाओ। हरामी दोस्त ज्यादा याद करते हैं।
कुछ स्कूल के सहपाठियों ने कहा दोपहर का खाना साथ खाएंगे और हम स्कूल दर्शन और स्कूल में फोटोग्राफी सेशन पूरा कर अपने सहपाठी के यँहा पहुंचे। सुबह से लेकर देर दोपहर तक हमने री-यूनियन का आनंद उठाया।
....... डैश डैश डैश बहुत कुछ किया री यूनियन में। यह लाइन उन दोस्तों को समर्पित है।
आख़िरकार सहारनपुर यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँची और हमने सहारनपुर से खट्टी मीठी यादों के साथ विदा ली।
शाम को हमने रोडवेज़ की बस ली और हरिद्वार के लिए निकल पड़े। क्योंकि ऋषिकेश के लिए कोई सीधी बस नहीं थी तो हमने हरिद्वार से दूसरी बस ली। हमारा पड़ाव था गढ़वाल मंडल विकास निगम का मुनि की रेती स्थित गेस्ट हाउस।
सहारनपुर से हरिद्वार का रास्ता धुल भरा था क्योंकि वँहा फोर लेन हाईवे बन रहा है। काम चालू था।
आखिरकार चार साढ़े चार घंटे की थकाऊ व्यस्त यात्रा के बाद हम ऋषिकेश पहुँच ही गए। ऋषिकेश गेस्ट हाउस पहुँचने से पहले ही हमने वँहा बोल दिया था कि हम देर से पहुंचेंगे। मुझे डर था कँही हमारी बुकिंग किसी और को न दे दें।
अच्छा एक बात बोलूं दीदी को लेकर मै थोड़ा आशंकित था कि मेरे साथ वो फकीरी वाले ट्रिप में एडजस्ट कैसे करेंगी। पर ट्रिप के बाद मेरी यह फकीरी धरी की धरी रह गयी जितने अच्छे से उन्होंने यह ट्रिप की और नाजुक पलों में मुझे हिम्मत दी। आज मै सोचता हूँ शायद मेरी केदार यात्रा अधूरी रह जाती।
अन्ततः हम ऋषिकेश पहुँच ही गए।बहुत ठंडी हवा बह रही थी कोई बोल रहा था यँहा रात में उत्तर से हवा बहती है। कल सुबह का अलार्म लगा कर हम अपने स्लीपिंग बैग में घुस गए।
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