Friday, May 31, 2019

मेरी पहली केदार यात्रा - क्यों (3)

कभी कभी मुझे लगता है शायद दूसरों को भी लगता हो , कि मै एक ही इंसान हूँ या दो तीन।  मेरे में भी बहुत कमियाँ है।  सबसे बड़ी कमी "ना सुनना"।

अच्छा मुझे पहाड़, ऊँचे ऊँचे पहाड़ पसंद है।  एक बार किसी ने मुझसे पुछा समुद्र तट या पहाड़।  बिना हिचक मैंने उसे बोला पहाड़। पहाड़ आपकी विल पावर की हर दूसरे मिनट में परीक्षा लेते है। जितना ऊपर आप पहुँचते है उतना ही सुन्दर दृश्य देखने को मिलता है।  और एक बात और , ऊपर से लोग छोटे छोटे भी दिखाई देते है।

कभी कभी सेम टू सेम जीवन भी ऐसा ही होता है ना।  जब आप समतल पर होते हो तो न तो ज्यादा सांस फूलती है।  लेकिन सब लोग समान होते है।  ऊपर चढ़ने की चाहत में आपको साँस फुलानी पड़ती है।  टाँगे आपको बोलती है कितना और चलाओगे।  लोगो से आप रास्ता पूछते हो , पूछते हो आगे कितना रास्ता बाकी है। कोई शार्ट कट भी है क्या ?

शॉर्टकट कई बार खतरनाक भी होता है जीवन में भी और पहाड़ों पर भी।

पर एक बार जब आप ऊपर चढ़ गए।  तो उससे भी ऊँचा पहाड़ दिखता है।  उसे भी विजित करना है।

तुंगनाथ गए लोग बताते थे कि कैसे वो एक शांत जगह पर पहुंचे जँहा से उन्हें और ऊँचे बर्फ से ढके पहाड़ दिखे। कैसे भोले बाबा वंहा विराजमान है।  कैसे ठंडी ठंडी हवा उन लोगो की परीक्षा लेती है। कैसे वँहा  कुछ देर मेडिटेट करने का मन करता है , मेरा तो सोने का भी किया।  कैसे बुरांश के फूल चोपता घाटी को अदभुत देव भूमि बनाते है।

सच बोलूं तो केदारनाथ से तुंगनाथ जाने का मेरा मन अधिक था।  केदारनाथ इसलिए की चलो एक धार्मिक यात्रा भी एक धाम भी हो जायेगा।  साथ में सोचा पुराने स्कूल के दोस्तों के साथ एक री-यूनियन भी की जाये।

नियति भी मुझको अपने विपश्यी मित्र के केदार बद्री के प्लान से कँहा ले गयी।  एक फकीरी वाला प्लान बना।  पर उसमें  अपने जन्मस्थान को देखने का लग्जरी प्लान भी ऐड हो गया।

मेरी बड़ी दीदी , शुरू से बहुत झुझारू और बहुत ही बुद्धिमान और प्रैक्टिकल है ।  बचपन से अगर मैंने अपनी लाइफ में कुछ अचीव किया तो उसका एक बड़ा श्रेय उनको जायेगा।

उन्होंने बोला दिल्ली से सहारनपुर बस , क्यों नहीं शताब्दी एक्सप्रेस से चले।  जो नॉर्थ इण्डिया में रहते है उन्हें पता है शताब्दी सुपर से सुपरफास्ट  ट्रेन है।  अब तो कम किराये वाली जन शताब्दी एसी ट्रेन भी ट्रैक पर दौड़ती है पर सुबह के हिसाब से शताब्दी मुझे ठीक लगी।  अब हम दो थे, मुझे दी की बात पसंद आयी और हमने शताब्दी से सहारनपुर जाने का निर्णय किया। पर  हमारी फ्लाइट दस मई की रात को मुंबई से दिल्ली की थी और हम सुबह के एक बजे दिल्ली पहुंच गये। हमारा प्लान था सुबह एयरपोर्ट मेट्रो में बैठकर दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचने का।  लेकिन एयरपोर्ट से उतरते हमें पता चला की मेट्रो स्टेशन अभी बंद है, एक तो रात के दो बजे के आस पास का समय और हमें समझ नहीं आ रहा था कि कैसे समय बिताये। आखिर में हमने सोचा मेट्रो स्टेशन पहुंचा जाये। वँही देखेंगे की रात कैसे बितायी जाये।

हमने अपने ट्रैकिंग बैग उठाये और मेट्रो स्टेशन की और चलना शुरू किया। तभी मेरी नज़र एक लाल रंग की बस  पर  पड़ी।  यह तो कश्मीरी गेट की बस  थी.

बस , नई दिल्ली रेलवे स्टेशन , स्टेशन का एसी वेटिंग रूम  बहुत कुछ है बताने को - अगली पोस्ट में

पिछला पोस्ट : मेरी पहली केदार यात्रा - यात्रा से पहले

Wednesday, May 29, 2019

मेरी पहली केदार यात्रा - यात्रा से पहले (2)

घर पर बोला दोस्तों के साथ जाना है , फिर बोला नहीं बात नहीं बनी अब अकेले जाऊँगा। हिमालय की खोज अकेले की जाये। जुकरबर्ग और स्टीव जॉब्स को जिस प्रकार नीम करोली वाले बाबा मिले या कितने ही महापुरषों को हिमालय में ज्ञान मिला। कुछ तो होगा इस हिमालय में।

अच्छा  डेकाथलान का नवी मुंबई में होना बहुत फायदेमंद रहा।  माँ की दी हुई आर्थिक सहायता से ट्रैकिंग का बहुत सा सामान जुटा लिया। सब सामानों की लिस्ट बनायी और कंप्यूटर में उन्हें सेव किया।

रोज लोकल इ-न्यूज़ पेपर पढ़कर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के बारे में पड़ना। इतना निश्चित था केदारनाथ में इस बार बहुत बर्फ गिरी थी।  वँहा की बहुत सी व्यवस्थाएँ या तो बर्फ़बारी में नष्ट हो गयी या उनका काम करने लायक होना मुश्किल था। पर केदारनाथ धाम में बर्फ का होना रोमांचित कर रहा था।


इंस्टाग्राम में केदारनाथ और तुंगनाथ के विडिओ देखकर पल पल मै रोमांचित था। मै रोज इनको अपने व्हाट्सएप्प स्टेटस में अपडेट करता।



पर शायद सिर्फ मै ही नहीं रोमांचित था।  मेरी बड़ी बहन भी उत्सुक थी। उन्होंने बोला , "अरुण , मै भी।" मैंने बोला , " हाँ , चलो। "

फिर क्या उन्होंने भी तैयारी शुरू कर दी। मयंक से , उनके अपने  दोस्तों से इनफार्मेशन लेना और देना शुरू हो गया।  एक बेसिक प्लान बना।  जिसमें अपने नेटिव होमटाउन में जाना भी निश्चित हुआ।

कुछ समय पहले नोएडा में हमने एक री-यूनियन की थी , जिसमें पुराने स्कूल के कुछ मित्र एक रेस्टोरेंट में  मिले थे। बहुत बार सोचा कि अपने पुराने स्कूल जाये और अपने स्कूल के दोस्तों से मिला जाये।

 इस बार मैंने सबको पहले से ही बोल दिया था कि हम मिलेंगे मई में।  इधर दीदी की भी री-यूनियन प्लान हो गयी। दीदी ने उसी फ्लाइट में टिकट बुक करा लिया जिसमें मेरा था।  मेरा पहला प्लान बस से सहारनपुर जाने का था।  लकड़ी की नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध सहारनपुर जो की हमारा होमटाउन है या था क्योंकि अब तो हम नवी मुंबई में ही बस गये। सहारनपुर में तो अब बसी है सिर्फ यादे - अनमोल बचपन की यादें।

तो केदारनाथ यात्रा से पहले हम सहारनपुर कैसे पहुँचे , करीब दस साल बाद मै वँहा पहुँचा था।  वँहा क्या देखा क्या मिस किया , क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गये , आपको आगे बताऊँगा । ......

पिछला पोस्ट : मेरी पहली केदार यात्रा

Sunday, May 26, 2019

मेरी पहली केदार यात्रा (1)

मेरा एक विपश्यी हैदराबादी मित्र है। वो और मै पहली बार ईगतपुरी में मिले थे। वह तब मुंबई में ही माइंड स्पेस में जॉब करता था।  हाल ही में उसे बैंगलोर में जॉब मिला था। व्हाट्सप्प से कभी कभार एक दूसरे को मैसेज भेज दिया करते थे। उसे पीठ के दर्द की समस्या थी विपश्यना के आखिरी दिन किसी ने उसे बोला था की पीठ दर्द के लिए ट्रैकिंग बहुत अच्छा स्पोर्ट्स है। वो मुझसे कई बार बोलता था ट्रैकिंग जाने के लिए।  पर कभी भी हमारा समय मैच नहीं हो पाया।


फरवरी २०१९ के आखिरी दिनों में उसका मैसेज आया केदारनाथ जाना है।  शायद बिना कुछ ज्यादा सोचे एक दम से मैंने बोला,  "हाँ  चलो चलते है"। इस मित्र ने अपने मुंबई के दोस्तों  के साथ केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा का प्लान बनाया था। उसने अपने इस प्लान के व्हाट्सप्प ग्रुप में मुझको भी ऐड कर लिया।


लेकिन नियति अपने खेल खुद खेलती है।  मेरा एक बचपन का मित्र जो कि एयर इण्डिया के केबिन क्रू में एक अनोखा पैशन के साथ जॉब करने वाला इंसान है। हम जब भी बात करते है तो वो हिमालय के ऊपर ही होती है। वो भी उत्तराखंड के यमुनोत्री गंगोत्री से लेकर केदारनाथ बद्रीनाथ तक फैली विशाल हिमालय श्रंखला। उसकी तुंगनाथ मध्य महेश्वर की कहानिया सुनसुनकर मेरी भी तुंगनाथ जाने की इच्छा प्रबल हो चुकी थी।

हरे भरे पहाड़ , बर्फ से ढँकी ऊँची ऊँची चोटियाँ , बुगियाल मतलब इन पहाड़ो पर मिल जाने वाले मैदान और नीली हरी झीलें। जिसमे बर्फ की चोटियाँ झाँकती हो। ये मेरे सपनो के एक अटूट हिस्से है। जबकि कुल्लू में एक बार मै इन्ही पहाड़ों के बीच ना जाने क्यों मै अकेलेपन का हद तक अनुभव कर चुका हूँ।

प्लानिंग शुरू हुई , मयंक से प्लान डिस्कस किया गया।  उसने मुझे बोला तुंगनाथ तो ज़रूर करना।  बस यही पर मेरे इस दोस्त के दोस्तों और मुझमें विचारों का अंतर आ गया।  वो तुंगनाथ आखिर में करना चाहते थे बफर दिन में। जबकि मै तुंगनाथ यात्रा  केदारनाथ और  बद्रीनाथ यात्रा के बीच में करना चाहता था।  टेक्निकल रूप से मै सही था। तुंगनाथ केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच आता है ,लेकिन तुंगनाथ मेरे मित्र और उसके मित्रों के मूल प्लान में नहीं था । अन्ततः आख़िरकार मैंने अपने मित्र को बोला मै तुंगनाथ को मिस नहीं करूँगा और उन्होंने कहा वो बद्रीनाथ आखिर में नहीं करेंगे। और मै उनके ग्रुप से एग्जिट कर गया।

लेकिन तब तक फ्लाइट बुक हो चुकी थी।  और मैंने केदारयात्रा अकेले करने का निर्णय किया।

आज बस इतना ही , केदारयात्रा  से आखिर मैंने क्या खोया क्या पाया आपको आगे बताऊंगा। ........