घर पर बोला दोस्तों के साथ जाना है , फिर बोला नहीं बात नहीं बनी अब अकेले जाऊँगा। हिमालय की खोज अकेले की जाये। जुकरबर्ग और स्टीव जॉब्स को जिस प्रकार नीम करोली वाले बाबा मिले या कितने ही महापुरषों को हिमालय में ज्ञान मिला। कुछ तो होगा इस हिमालय में।
अच्छा डेकाथलान का नवी मुंबई में होना बहुत फायदेमंद रहा। माँ की दी हुई आर्थिक सहायता से ट्रैकिंग का बहुत सा सामान जुटा लिया। सब सामानों की लिस्ट बनायी और कंप्यूटर में उन्हें सेव किया।
रोज लोकल इ-न्यूज़ पेपर पढ़कर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के बारे में पड़ना। इतना निश्चित था केदारनाथ में इस बार बहुत बर्फ गिरी थी। वँहा की बहुत सी व्यवस्थाएँ या तो बर्फ़बारी में नष्ट हो गयी या उनका काम करने लायक होना मुश्किल था। पर केदारनाथ धाम में बर्फ का होना रोमांचित कर रहा था।
इंस्टाग्राम में केदारनाथ और तुंगनाथ के विडिओ देखकर पल पल मै रोमांचित था। मै रोज इनको अपने व्हाट्सएप्प स्टेटस में अपडेट करता।
पर शायद सिर्फ मै ही नहीं रोमांचित था। मेरी बड़ी बहन भी उत्सुक थी। उन्होंने बोला , "अरुण , मै भी।" मैंने बोला , " हाँ , चलो। "
फिर क्या उन्होंने भी तैयारी शुरू कर दी। मयंक से , उनके अपने दोस्तों से इनफार्मेशन लेना और देना शुरू हो गया। एक बेसिक प्लान बना। जिसमें अपने नेटिव होमटाउन में जाना भी निश्चित हुआ।
कुछ समय पहले नोएडा में हमने एक री-यूनियन की थी , जिसमें पुराने स्कूल के कुछ मित्र एक रेस्टोरेंट में मिले थे। बहुत बार सोचा कि अपने पुराने स्कूल जाये और अपने स्कूल के दोस्तों से मिला जाये।
इस बार मैंने सबको पहले से ही बोल दिया था कि हम मिलेंगे मई में। इधर दीदी की भी री-यूनियन प्लान हो गयी। दीदी ने उसी फ्लाइट में टिकट बुक करा लिया जिसमें मेरा था। मेरा पहला प्लान बस से सहारनपुर जाने का था। लकड़ी की नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध सहारनपुर जो की हमारा होमटाउन है या था क्योंकि अब तो हम नवी मुंबई में ही बस गये। सहारनपुर में तो अब बसी है सिर्फ यादे - अनमोल बचपन की यादें।
तो केदारनाथ यात्रा से पहले हम सहारनपुर कैसे पहुँचे , करीब दस साल बाद मै वँहा पहुँचा था। वँहा क्या देखा क्या मिस किया , क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गये , आपको आगे बताऊँगा । ......
पिछला पोस्ट : मेरी पहली केदार यात्रा
अच्छा डेकाथलान का नवी मुंबई में होना बहुत फायदेमंद रहा। माँ की दी हुई आर्थिक सहायता से ट्रैकिंग का बहुत सा सामान जुटा लिया। सब सामानों की लिस्ट बनायी और कंप्यूटर में उन्हें सेव किया।
रोज लोकल इ-न्यूज़ पेपर पढ़कर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के बारे में पड़ना। इतना निश्चित था केदारनाथ में इस बार बहुत बर्फ गिरी थी। वँहा की बहुत सी व्यवस्थाएँ या तो बर्फ़बारी में नष्ट हो गयी या उनका काम करने लायक होना मुश्किल था। पर केदारनाथ धाम में बर्फ का होना रोमांचित कर रहा था।
इंस्टाग्राम में केदारनाथ और तुंगनाथ के विडिओ देखकर पल पल मै रोमांचित था। मै रोज इनको अपने व्हाट्सएप्प स्टेटस में अपडेट करता।
पर शायद सिर्फ मै ही नहीं रोमांचित था। मेरी बड़ी बहन भी उत्सुक थी। उन्होंने बोला , "अरुण , मै भी।" मैंने बोला , " हाँ , चलो। "
फिर क्या उन्होंने भी तैयारी शुरू कर दी। मयंक से , उनके अपने दोस्तों से इनफार्मेशन लेना और देना शुरू हो गया। एक बेसिक प्लान बना। जिसमें अपने नेटिव होमटाउन में जाना भी निश्चित हुआ।
कुछ समय पहले नोएडा में हमने एक री-यूनियन की थी , जिसमें पुराने स्कूल के कुछ मित्र एक रेस्टोरेंट में मिले थे। बहुत बार सोचा कि अपने पुराने स्कूल जाये और अपने स्कूल के दोस्तों से मिला जाये।
इस बार मैंने सबको पहले से ही बोल दिया था कि हम मिलेंगे मई में। इधर दीदी की भी री-यूनियन प्लान हो गयी। दीदी ने उसी फ्लाइट में टिकट बुक करा लिया जिसमें मेरा था। मेरा पहला प्लान बस से सहारनपुर जाने का था। लकड़ी की नक्काशी के लिए विश्व प्रसिद्ध सहारनपुर जो की हमारा होमटाउन है या था क्योंकि अब तो हम नवी मुंबई में ही बस गये। सहारनपुर में तो अब बसी है सिर्फ यादे - अनमोल बचपन की यादें।
तो केदारनाथ यात्रा से पहले हम सहारनपुर कैसे पहुँचे , करीब दस साल बाद मै वँहा पहुँचा था। वँहा क्या देखा क्या मिस किया , क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गये , आपको आगे बताऊँगा । ......
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