फरवरी २०१९ के आखिरी दिनों में उसका मैसेज आया केदारनाथ जाना है। शायद बिना कुछ ज्यादा सोचे एक दम से मैंने बोला, "हाँ चलो चलते है"। इस मित्र ने अपने मुंबई के दोस्तों के साथ केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा का प्लान बनाया था। उसने अपने इस प्लान के व्हाट्सप्प ग्रुप में मुझको भी ऐड कर लिया।
लेकिन नियति अपने खेल खुद खेलती है। मेरा एक बचपन का मित्र जो कि एयर इण्डिया के केबिन क्रू में एक अनोखा पैशन के साथ जॉब करने वाला इंसान है। हम जब भी बात करते है तो वो हिमालय के ऊपर ही होती है। वो भी उत्तराखंड के यमुनोत्री गंगोत्री से लेकर केदारनाथ बद्रीनाथ तक फैली विशाल हिमालय श्रंखला। उसकी तुंगनाथ मध्य महेश्वर की कहानिया सुनसुनकर मेरी भी तुंगनाथ जाने की इच्छा प्रबल हो चुकी थी।
हरे भरे पहाड़ , बर्फ से ढँकी ऊँची ऊँची चोटियाँ , बुगियाल मतलब इन पहाड़ो पर मिल जाने वाले मैदान और नीली हरी झीलें। जिसमे बर्फ की चोटियाँ झाँकती हो। ये मेरे सपनो के एक अटूट हिस्से है। जबकि कुल्लू में एक बार मै इन्ही पहाड़ों के बीच ना जाने क्यों मै अकेलेपन का हद तक अनुभव कर चुका हूँ।
प्लानिंग शुरू हुई , मयंक से प्लान डिस्कस किया गया। उसने मुझे बोला तुंगनाथ तो ज़रूर करना। बस यही पर मेरे इस दोस्त के दोस्तों और मुझमें विचारों का अंतर आ गया। वो तुंगनाथ आखिर में करना चाहते थे बफर दिन में। जबकि मै तुंगनाथ यात्रा केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा के बीच में करना चाहता था। टेक्निकल रूप से मै सही था। तुंगनाथ केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच आता है ,लेकिन तुंगनाथ मेरे मित्र और उसके मित्रों के मूल प्लान में नहीं था । अन्ततः आख़िरकार मैंने अपने मित्र को बोला मै तुंगनाथ को मिस नहीं करूँगा और उन्होंने कहा वो बद्रीनाथ आखिर में नहीं करेंगे। और मै उनके ग्रुप से एग्जिट कर गया।
लेकिन तब तक फ्लाइट बुक हो चुकी थी। और मैंने केदारयात्रा अकेले करने का निर्णय किया।
आज बस इतना ही , केदारयात्रा से आखिर मैंने क्या खोया क्या पाया आपको आगे बताऊंगा। ........
Awesome
ReplyDeleteI admire your courage to exit the group for your commitment to the plan.
ReplyDeleteOne suggestion, think about having the photo on the top of the post.